प्राथमिक विद्यालयों को कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर चलाने की पहल की थी। प्रदेश में 2018 में पांच हजार परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम से संचालित करने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ाया। इसके लिए हर विकासखंड व नगर क्षेत्र में पांच-पांच परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों का चयन हुआ। चयन में छात्र संख्या, विद्यालय में शैक्षिक सुविधाओं का ध्यान रखा गया, फिर शिक्षक व प्रधानाध्यापकों को चयनित किया गया। यह शर्त रखी गई कि शिक्षण कार्य परिषदीय स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाएं ही करेंगे। इन स्कूलों में कक्षा एक, दो व तीन में अंग्रेजी माध्यम, चार व पांच में अंग्रेजी और हिंदी दोनों माध्यमों से पढ़ाई शुरू हुई। शिक्षक व प्रधानाध्यापकों के चयन के लिए आवेदन लेकर लिखित परीक्षा कराई गई. उन्हें महत्व दिया गया, जिसने इंटर परीक्षा अंग्रेजी विषय से उत्तीर्ण की हो या फिर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण की हो। प्रधानाध्यापक सहित हर स्कूल में पांच शिक्षक तैनात हुए और उन्हें आंग्ल भाषा शिक्षण संस्थान प्रयागराज व राज्य शिक्षा संस्थान प्रयागराज की ओर से प्रशिक्षित किया गया। इन स्कूलों के संचालन का फायदा विद्यालयों में छात्र- छात्राओं की संख्या बढ़ने से हुआ। इससे अगले ही वर्ष शासन ने विद्यालयों की तादाद बढ़ाकर दोगुनी यानी दस हजार कर दी। हालांकि इस वर्ष कोरोना संकट की वजह से विद्यालय खुल ही नहीं सके हैं। अब नई शिक्षा नीति से इस प्रक्रिया पर विराम लगने की की उम्मीद है. भले ही विद्यालय शिक्षक और छात्र- छात्राएं न बदलें लेकिन वहां पढ़ाई का माध्यम बदलना लगभग तय है। शिक्षाविदों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो पहल की है वह प्रावधान शिक्षा का अधिकार अधिनियम यानी आरटीई में पहले से है। आंग्ल भाषा शिक्षण संस्थान प्रयागराज के प्राचार्य स्कंद शुक्ल का कहना है कि शासन का जो आदेश होगा उसका अनुपालन कराया जाएगा।
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