संविधान में राज्यों को पंचायत एवं निकाय चुनावों के लिए अपने नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। उन्हें यह भी अधिकार है कि वे अपने स्तर पर मतदाता सूची तैयार कराएं या विधानसभा चुनाव के लिए तैयार चुनाव आयोग की मतदाता सूची का प्रयोग करें। अब केंद्र सरकार लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के लिए एक ही मतदाता सूची की संभावना तलाश रही है, जिससे एकरूपता भी आएगी और खर्च भी कम होगा। एक अधिकारी ने कहा कि अलग-अलग मतदाता सूची होने के कारण एक ही काम पर दोहरा खर्च होता है। यह मतदाताओं के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि मतदाता सूचियों में कोई विसंगति नहीं रहेगी। कई बार ऐसा देखने में आता है कि किसी व्यक्ति का एक मतदाता सूची में नाम होने के बाद भी दूसरी सूची में नाम नहीं होता है। इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस संबंध में बैठक बुलाई थी, जिसमें कानून मंत्रलय एवं चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों से मौजूदा व्यवस्था एवं संभावनाओं राय मांगी गई।
चुनाव आयोग, विधि आयोग, कानूनी मामलों पर संसद की स्थायी समिति और कार्मिक मंत्रलय पहले भी कई मौकों पर एक मतदाता सूची की वकालत कर चुके हैं। नवंबर, 1999 में चुनाव आयोग ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों की ओर से अलग-अलग मतदाता सूचियों से मतदाताओं के भी भ्रम की स्थिति बनती है। संसदीय समिति ने कानून मंत्रलय के मांग एवं अनुदान (2016-17) की रिपोर्ट में चुनाव आयोग एवं राज्य चुनाव आयोगों की ओर से अलग-अलग मतदाता सूचियां बनाने का उल्लेख किया था।
’>>एक ही काम के लिए नहीं होगा केंद्र एवं राज्य में अलग-अलग खर्च
’>>राज्य चुनाव आयोग कर सकेंगे चुनाव आयोग की सूची का इस्तेमाल
अभी यह है व्यवस्था
अभी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग मतदाता सूची तैयार करता है। वहीं नगर निगम व पंचायत जैसे स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए राज्य चुनाव आयोग अपने-अपने स्तर पर मतदाता सूचियां तैयार करते हैं। कई राज्य चुनाव आयोग अपनी मतदाता सूची बनाने के लिए चुनाव आयोग की ड्राफ्ट मतदाता सूची का इस्तेमाल करते हैं।