कभी डॉक्टर बनाने की होड़ लगी तो कभी इंजीनियर और वकील बनाने की। यह सब रुचि, योग्यता और जरूरत का आकलन किए बगैर ही सभी को एक ओर झोंकने के रूप में किया जा रहा था। शिक्षा को इस प्रवृत्ति से बाहर निकालना जरूरी था। नई नीति को लेकर पीएम शुक्रवार को सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, शिक्षाविदों और उच्च शिक्षण संस्थानों के निदेशकों को संबोधित कर रहे थे। नीति के अमल पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसको लेकर किसी तरह की आशंका की आवश्यकता नहीं है। प्रधानमंत्री की यह प्रतिबद्धता इसलिए भी अहम है, क्योंकि इससे पहले जो भी शिक्षा नीति बनी, उसके अमल में काफी लेटलतीफी हुई। 1986 में जो नीति आई थी, उसके ज्यादातर मसौदे को 1992 में लागू किया गया।
कभी डॉक्टर बनाने की होड़ लगी तो कभी इंजीनियर और वकील बनाने की। यह सब रुचि, योग्यता और जरूरत का आकलन किए बगैर ही सभी को एक ओर झोंकने के रूप में किया जा रहा था। शिक्षा को इस प्रवृत्ति से बाहर निकालना जरूरी था। नई नीति को लेकर पीएम शुक्रवार को सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, शिक्षाविदों और उच्च शिक्षण संस्थानों के निदेशकों को संबोधित कर रहे थे। नीति के अमल पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसको लेकर किसी तरह की आशंका की आवश्यकता नहीं है। प्रधानमंत्री की यह प्रतिबद्धता इसलिए भी अहम है, क्योंकि इससे पहले जो भी शिक्षा नीति बनी, उसके अमल में काफी लेटलतीफी हुई। 1986 में जो नीति आई थी, उसके ज्यादातर मसौदे को 1992 में लागू किया गया।